Thursday, September 1, 2011

गणेश चतुर्थी पर चाँद से सावधान


श्री गणेश  विध्न विनाशक है । इन्हें देव समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । भाद्रपद्र कृष्ण चतुर्थी को गणेश जी की उत्पत्ति हुई थी, उनका गजानन रुप में जन्म भाद्रपद शुक्ल चौथ को मध्याह्न के समय हुआ ।गणेश चतुर्थी सनातन धर्म के अनुसार हिन्दुओ का एक प्रमुख त्योहार है ! यह त्योहार महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता हैं। गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी (अनंत चौदस) तक दस दिन गणेशोत्सव मनाया जाता है।भादौ शुक्ल तृतीया और चतुर्थी को लेकर असमंजस की स्थिति बन रही है। कुछ पंचांग में तीज के दिन ही चतुर्थी भी दर्शाई जा रही है, वहीं कुछ में अलग-अलग दिन हैं। भादौ मास में आने वाली हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी एक ही दिन आने से महिलाओं में संशय है कि वे हरतालिका तीज का उपवास रखें या लड्डू-मोदक  बनाकर गणपति बप्पा का जन्मोत्सव मनाएँ। इस संबंध में ज्योतिषियों से चर्चा की तो कुछ इस तरह के तथ्य सामने आए।धर्मशास्त्रों के अनुसार हस्त नक्षत्रयुक्त तृतीया को ही हरतालिका तीज मनाई जाती है। तृतीया का स्पर्शकाल हस्त नक्षत्र में 31 अगस्त को है। 1 सितंबर, को भाद्र शुक्ल चतुर्थी पर गणेश की पार्थिव स्थापना का विनायकी क्रम है अर्थात यह विनायकी चतुर्थी कहलाती है।  ऋग्वेद का कथन है- 'न ऋचे त्वत् क्रियते किं चनारे।' हे गणेश! तुम्हारे बिना कोई भी कर्म प्रारंभ नहीं किया जाता। 'आदौ पूज्यो विनायक:'- इस उक्ति के अनुसार समस्त शुभ कार्यो के प्रारंभ में सिद्धिविनायक की पूजा आवश्यक है। विघ्नेश्वर प्रसन्न होने पर 'विघ्नहर्ता' बनकर जब कार्य-सिद्धि में सहायक होते है, तब वे 'सिद्धिविनायक' के नाम से पुकारे जाते है।

भाद्रपद चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन से लगे दोष

सिद्धिविनायक-चतुर्थी(भाद्रपद चतुर्थी)के दिन चन्द्रदर्शननिषिद्ध है। ऐसा सिद्धिविनायकके चन्द्रदेवको शाप देने के कारण है! स्वयं सिद्धिविनायक का वचन है-

भाद्रशुक्लचतुथ्र्यायो ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपिवा।अभिशापीभवेच्चन्द्रदर्शनाद्भृशदु:खभाग्॥
जो जानकर या अनजाने ही भाद्र-शुक्ल-चतुर्थी को चन्द्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। इस दिन (भाद्रपद चतुर्थी) को चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक का भागी बनना पड़ता है । क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है की  एक बार चंद्रमा ने गणेश जी का गजमुख व लम्बोदर देखकर उनका मजाक उड़ाया था, गणेश  जी ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि आज से जो भी तुम्हें देखेगा उसे मिथ्या कल्रंक लगेगा । चंद्रमा द्वारा माफी मांगने व श्रापमुक्त करने के अनुरोध पर वर्ष भर में एक दिन भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन से कलंक लगने का विधान बना । इस दिन चांद के दर्शन करने से भगवान श्री कृष्ण को भी मणि चोरी का कलंक लगा था । गणेश जी का यह पूजन करने से बुध्दि और ॠध्दि-सिध्दि की प्राप्ति होती है तथा विध्न बाधाओं का समूल नाश हो जाता है ।भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करेगा उस पर कलंक अवश्य लगेगा तभी से इस दिन चद्रमा के दर्शन नही किये जाने की परम्परा है। गणेशपुराण में भी यह वर्णित है कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लेने पर कलंक अवश्य लगता है। ऐसा गणेश जी के अमोघ शाप के कारण है।

चंद्र दर्शन दोष से बचाव  :--

 

प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात्‌ व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-'सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥'इस दिन चन्द्रमा देख लेने पर उसके दोष के शमन हेतु श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के 57वेंअध्याय को पढें। जिसमें स्यमन्तकमणि के हरण का प्रसंग हैं। श्रीमद्भागवत में वर्णित इस प्रसंग को पढ़ना अथवा सुनना चाहिए।

 

                  

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